आयुर्वेद में खांसी (कास): कारण, प्रकार और सरल उपचार

A young Indian woman in traditional dress coughing and holding a tissue while sitting at home.

खांसी, जिसे आयुर्वेद में कास कहते हैं, केवल मौसमी परेशानी नहीं है। दरअसल, यह संकेत देती है कि आपके शरीर की ऊर्जाएँ असंतुलित हैं। आयुर्वेद, भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति, खांसी का इलाज इसके मूल कारणों को ठीक करके करती है। इसलिए, इस ब्लॉग में हम आयुर्वेद के दृष्टिकोण से खांसी को समझेंगे, इसके पांच प्रकार जानेंगे, और सरल उपचार देखेंगे। चाहे आप सूखी खांसी से परेशान हों या बलगम वाली खांसी से, यह गाइड आपको आसान उपाय देगा।

कास को समझें: आयुर्वेद का नज़रिया

आयुर्वेद के अनुसार, खांसी तब होती है जब प्राण वायु, जो साँस लेने को नियंत्रित करती है, रुकावट का सामना करती है। इसके परिणामस्वरूप, हवा बलपूर्वक बाहर निकलती है, जिसे हम खांसी कहते हैं। आयुर्वेद खांसी को पांच प्रकारों में बाँटता है:

  1. वातज कास: सूखी खांसी, जिसमें बलगम नहीं होता। इसमें छाती में दर्द और गले में सूखापन होता है।
  2. पित्तज कास: पीला या हरा बलगम, गले में जलन, बुखार, और मुंह में कड़वाहट।
  3. कफज कास: गीली खांसी, जिसमें गाढ़ा बलगम और भारीपन महसूस होता है।
  4. क्षतज कास: शुरू में सूखी, बाद में खून वाला बलगम, जो ऊतकों को नुकसान दर्शाता है।
  5. क्षयज कास: गंभीर खांसी, जिसमें दुर्गंधयुक्त बलगम और कमजोरी होती है।

उदाहरण के लिए, कास का प्रकार जानने से आयुर्वेद उपचार को शरीर के दोषों (वात, पित्त, कफ) के संतुलन के लिए अनुकूलित करता है। आइए, अब उपचार देखें।

स्तर 1: प्राथमिक उपचार

सबसे पहले, आयुर्वेद सरल उपायों पर ध्यान देता है। ये उपाय लक्षणों को कम करते हैं और असंतुलन को ठीक करते हैं। यहाँ प्रत्येक प्रकार के लिए उपचार और दवाएँ हैं:

वातज कास (सूखी खांसी)

उपचार:

  • स्नेहपान: गले को नम करने के लिए सुबह-शाम कंटकारी घी (10 मिली) गर्म पानी के साथ लें।
  • गर्म सेंक: छाती पर गर्म तेल लगाएँ। फिर, 20 मिनट तक गर्म सेंक करें।

दवाएँ:

  • कंटकारी घी: 10 मिली, गर्म पानी के साथ, दिन में दो बार।
  • तालीसादी पाउडर: 3 ग्राम, घी और शहद के साथ, दिन में दो बार।
  • दशमूल काढ़ा: 10 मिली, चीनी के साथ, दिन में दो बार।
  • अगस्त्य हरीतकी: 6 ग्राम, गर्म दूध के साथ, दिन में दो बार।

पित्तज कास (जलन के साथ खांसी)

दवाएँ:

  • वासा पाउडर: 3 ग्राम, शहद के साथ, दिन में दो बार। यह गले की जलन कम करता है।
  • गोजिव्हा काढ़ा: 10 मिली, पानी में मिलाकर, दिन में दो बार।
  • द्राक्षा लेह: 6 ग्राम, गर्म पानी के साथ, दिन में दो बार।
  • कंटकारी काढ़ा: 12 मिली, पानी में मिलाकर, दिन में दो बार।

कफज कास (गीली खांसी)

उपचार:

  • धूमपान: काली मिर्च और इलायची की धूप सूंघें। यह बलगम को साफ करता है।
  • गर्म सेंक: अरंडी के पत्तों और तिल तेल से सेंक करें।

दवाएँ:

  • त्रिकटु + वासा: 1 ग्राम त्रिकटु + 2 ग्राम वासा, शहद के साथ, दिन में दो बार।
  • सितोपलादी + भारंगी: 3 ग्राम सितोपलादी + 1 ग्राम भारंगी, शहद के साथ, दिन में दो बार।

सभी प्रकार के कास के लिए

  • वासा रस: 20 मिली, शहद के साथ, दिन में 2-3 बार। यह गले को आराम देता है।
  • बिभीतकी काढ़ा: 20 मिली, गर्म पानी में मिलाकर, दिन में दो बार।

स्तर 2: लगातार खांसी के लिए उपचार

यदि प्राथमिक उपचार काम न करें, तो आयुर्वेद मजबूत दवाएँ देता है। यहाँ सिफारिशें हैं:

सभी प्रकार के कास

  • चंद्रामृत रस: 1 गोली, दिन में दो बार। वातज कास के लिए बकरी के दूध के साथ लें।
  • भागोत्तरा गोली: 2 गोलियाँ, दिन में तीन बार, गर्म पानी के साथ।
  • लवंगादी गोली: 6 गोलियाँ, मुंह में चूसें। यह गले की जलन कम करती है।

वातज कास

  • कंटकारी लेह: 10 ग्राम, दिन में दो बार, 1-2 सप्ताह तक।
  • समीरपन्नग रस: 60 मिलीग्राम, शहद के साथ, दिन में दो बार।

पित्तज कास

  • द्राक्षारिष्ट: 10 मिली, पानी के साथ, दिन में दो बार, 2 सप्ताह तक।
  • वासा लेह: 10 ग्राम, दिन में दो बार, 2-3 सप्ताह तक।

कफज कास

  • व्याघ्रीहरीतकी लेह: 10 ग्राम, दिन में दो बार, 2-3 सप्ताह तक।

क्षतज कास

  • कुष्मांड लेह: 10 ग्राम, गर्म दूध के साथ, दिन में दो बार।

क्षयज कास

  • श्वासकुठार रस: 125 मिलीग्राम, शहद के साथ, दिन में 3-4 बार।

स्तर 3: पंचकर्म के साथ उन्नत उपचार

जब खांसी गंभीर हो, तो आयुर्वेद पंचकर्म का उपयोग करता है। उदाहरण के लिए:

  • वमन: कफज कास में बलगम निकालने के लिए।
  • विरेचन: पित्तज कास में गर्मी और विषाक्त पदार्थों को निकालने के लिए।

इसके साथ, स्तर 2 की दवाएँ जारी रखें।

जीवनशैली और आहार सुझाव

इसके अलावा, आयुर्वेद जीवनशैली और आहार पर ध्यान देता है:

  • आहार: गर्म सूप और खिचड़ी लें। ठंडे खाद्य पदार्थों से बचें।
  • पानी: गर्म पानी या तुलसी चाय पिएं।
  • आराम: पर्याप्त नींद लें।
  • ट्रिगर्स: धूल और ठंडी हवा से बचें।

सावधानियाँ

हालांकि आयुर्वेद सुरक्षित है, लेकिन क्षतज या क्षयज कास के लिए चिकित्सक से परामर्श करें। यदि बलगम में खून या तेज बुखार हो, तो तुरंत डॉक्टर से मिलें।

निष्कर्ष

अंत में, आयुर्वेद खांसी का इलाज उसके प्रकार के आधार पर करता है। इसलिए, सही दवाएँ और जीवनशैली अपनाकर आप राहत पा सकते हैं। अब, एक आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श करें और स्वास्थ्य की ओर कदम बढ़ाएँ!

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