बवासीर, जिसे आमतौर पर हैमोरॉयड्स या पाइल्स के नाम से जाना जाता है, एक ऐसी स्थिति है जिसमें गुदा क्षेत्र में रक्त वाहिकाएं सूज जाती हैं और दर्द, जलन या रक्तस्राव का कारण बनती हैं। आयुर्वेद में इसे गुदा में मांस और मेद (वसा) के रोगजनक संचय के कारण होने वाला रोग माना जाता है। यह स्थिति चारक संहिता में वर्णित है और इसे शरीर के दोषों (वात, पित्त, कफ) के असंतुलन से जोड़ा जाता है। यह मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है: शुष्क बवासीर (बिना रक्तस्राव) और आर्द्र बवासीर (रक्तस्राव के साथ)। यह आमतौर पर गुदा क्षेत्र में 3, 7 और 11 बजे की स्थिति में मस्सों के रूप में देखा जाता है।
बवासीर के प्रकार और उनके लक्षण
आयुर्वेद के अनुसार, बवासीर को चार मुख्य प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है, जिनके लक्षण निम्नलिखित हैं:
विशेषताएं | वातज बवासीर | पित्तज बवासीर | कफज बवासीर | रक्तज बवासीर |
---|---|---|---|---|
मस्सों की बनावट | झुर्रीदार, सख्त, शुष्क, लाल रंग का | नरम, लाल या पीला रंग, जलन के साथ | बड़े, चिकने, सफेद रंग के, भारी | वातज जैसे, लेकिन रक्तस्राव के साथ |
रक्तस्राव | अनुपस्थित | हल्का पीला-लाल रंग का स्राव | प्रचुर, तनु, पीला-लाल रंग का स्राव | गंभीर रक्तस्राव |
वेग | मल, मूत्र और वायु का अवरोध | – | – | – |
बवासीर के लक्षण
बवासीर के लक्षण इस प्रकार हैं:
- रंग: काला, पीला या हरा, सफेद
- प्रकृति: मूख, नखा, मूत्र, माला और मूत्रा
- स्पर्श पर: कोमल, दर्दनाक, गर्म
- संबंधित लक्षण: पेट का दर्द, जलन, खुजली, सूजन, कमजोरी, प्रतिरक्षा में कमी
बवासीर का निदान (Diagnosis)
विभेदक निदान (Differential Diagnosis)
बवासीर का निदान करने के लिए निम्नलिखित स्थितियों से इसे अलग करना जरूरी है:
- गुदा भ्रंश (Rectal prolapse – Gudabhrimsa)
- गुदा में दरार (Fissure-in-ano – Parikartika)
- अल्सरेटिव कोलाइटिस और क्रोहन रोग
- कॉन्डिलोमा एक्यूमिनाटा (Condyloma Acuminata)
- प्रोक्टाइटिस (Proctitis)
- गुदा के कृमि (Ano-rectal warts)
- गुदा फोड़ा (Ano-rectal abscess)
- रेक्टल पॉलीप (Rectal polyp)
- घातक ट्यूमर (Malignant tumors – Arbuda)
नैदानिक निदान (Clinical Diagnosis)
- स्तर 1: एकल आयुर्वेद चिकित्सक/प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC)
इस स्तर पर, रोगी के इतिहास और नैदानिक लक्षणों के आधार पर बवासीर का प्रारंभिक निदान किया जाता है। किसी विशेष जांच की आवश्यकता नहीं होती। - स्तर 2: सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) या छोटे अस्पताल
इस स्तर पर, स्तर 1 के मापदंडों के आधार पर निदान किया जाता है। इसके अतिरिक्त, रेक्टल और प्रोक्टोस्कोपिक जांच की जा सकती है। CBC और विशेष जांच जैसे ECG, छाती का X-RAY सर्जिकल फिटनेस के लिए किया जा सकता है। - स्तर 3: आयुर्वेदिक अस्पताल/एकीकृत आयुर्वेदिक अस्पताल
इस स्तर पर भी निदान स्तर 1 के समान होता है, लेकिन गंभीर मामलों में गहन जांच की आवश्यकता हो सकती है।
बवासीर का आयुर्वेदिक उपचार
आयुर्वेद में बवासीर का उपचार तीन स्तरों पर किया जाता है:
स्तर 1: एकल आयुर्वेद चिकित्सक/प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC)
उपचार: प्रारंभिक अवस्था में, जब लक्षण हल्के हों, निम्नलिखित दवाएं दी जा सकती हैं:
दवा | खुराक रूप | खुराक | प्रशासन का समय | अवधि | अनुपान |
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हरितकी चूर्ण | चूर्ण | 2-4 ग्राम | खाली पेट/सोने से पहले | 2-3 सप्ताह | गुनगुना पानी |
त्रिफला चूर्ण | चूर्ण | 2-4 ग्राम | खाली पेट/सोने से पहले | 1-2 सप्ताह | गुनगुना पानी |
द्राक्षा | सूखे फल | 10-20 ग्राम | खाली पेट/सोने से पहले | 1-2 सप्ताह | गुनगुना पानी |
स्तर 2: सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) या छोटे अस्पताल
उपचार: स्तर 1 की दवाओं के साथ निम्नलिखित दवाएं दी जा सकती हैं:
दवा | खुराक रूप | खुराक | प्रशासन का समय | अवधि | अनुपान |
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अरोग्यवर्धिनी वटी | वटी | 1-2 वटी | सुबह खाली पेट/सोने से पहले | 1-2 सप्ताह | गुनगुना पानी |
अर्शकुठार रस | वटी | 1-2 वटी | सुबह खाली पेट/सोने से पहले | 1-2 सप्ताह | गुनगुना पानी |
कंकायन वटी | वटी | 1-2 वटी | सुबह खाली पेट/सोने से पहले | 1-2 सप्ताह | गुनगुना पानी |
फलत्रिकादि क्वाथ | क्वाथ | 20-40 मिली | खाली पेट, दिन में दो बार | 1-2 सप्ताह | – |
एरण्डमूल क्वाथ | क्वाथ | 20-40 मिली | खाली पेट, दिन में दो बार | 1-2 सप्ताह | – |
रेफरल मानदंड:
- उपचार से कोई सुधार न हो।
- गंभीर रक्तस्राव के मामले।
- जटिलताओं के साथ मामले।
स्तर 3: आयुर्वेदिक अस्पताल/एकीकृत आयुर्वेदिक अस्पताल
उपचार: स्तर 1 और 2 की दवाओं के साथ निम्नलिखित दवाएं दी जा सकती हैं:
दवा | खुराक रूप | खुराक | प्रशासन का समय | अवधि | अनुपान |
---|---|---|---|---|---|
अरोग्यवर्धिनी वटी | वटी | 1-2 वटी | सुबह खाली पेट/सोने से पहले | 1-2 सप्ताह | गुनगुना पानी |
अर्शकुठार रस | वटी | 1-2 वटी | सुबह खाली पेट/सोने से पहले | 1-2 सप्ताह | गुनगुना पानी |
कंकायन वटी | वटी | 1-2 वटी | सुबह खाली पेट/सोने से पहले | 1-2 सप्ताह | गुनगुना पानी |
फलत्रिकादि क्वाथ | क्वाथ | 20-40 मिली | खाली पेट, दिन में दो बार | 1-2 सप्ताह | – |
एरण्डमूल क्वाथ | क्वाथ | 20-40 मिली | खाली पेट, दिन में दो बार | 1-2 सप्ताह | – |
क्षार कर्म (संभावित दागने की प्रक्रिया):
- क्षार प्रतिसारण
- क्षार सूत्र बंधन
- अग्नि कर्म (सीधा दागना)
- शस्त्र कर्म (सर्जिकल हस्तक्षेप)
- शास्त्रीय विरेचन कर्म
रेफरल मानदंड:
- गंभीर रक्तस्राव वाले मरीज।
- गंभीर एनीमिया वाले मरीज, जिन्हें रक्ट आधान की आवश्यकता हो।
- अन्य बीमारियों (जैसे हृदय रोग, अनियंत्रित बीपी, डीएम, एचआईवी पॉजिटिव, एचबीएसएजी पॉजिटिव, वीडीआरएल पॉजिटिव, घातक रोग) से जुड़े मामले।
स्थानीय अनुप्रयोग (Local Application)
- परिषेक: अर्क, एरण्ड, बिल्वपत्र क्वाथ
- अवगाह: त्रिफला क्वाथ, पंचवल्कल क्वाथ
- धूपन: अर्कमूल और शमीपत्र
- अभ्यंग: जत्यादी तैल, मुरिवेन्न
- मात्रा बस्ति: जत्यादी तैल, पिप्पल्यादि तैल
क्या करें और क्या न करें (खानपान और रहन-सहन)
क्या करें (खानपान और रहन-सहन):
- खानपान: हरी मटर, फल जैसे द्राक्षा, संतरे का रस, नींबू का रस, खरबूजा, सलाद (गोभी, खीरा, गाजर से बनी), पालक, पत्तेदार सब्जियां, सुरण, पटोल, गौद, गुनगुने पानी की पर्याप्त मात्रा।
- रहन-सहन: नियमित व्यायाम जैसे चलना, जॉगिंग, बाहर के खेल, उचित दैनिक और मौसमी दिनचर्या।
क्या न करें (खानपान और रहन-सहन):
- खानपान: भारी भोजन, हरी मटर, काले चने, कच्ची सब्जियां और सलाद, परिष्कृत भोजन जैसे सफेद आटा, गोभी, फूलगोभी, आलू।
- रहन-सहन: नौकरी जिसमें लंबे समय तक बैठना या खड़े रहना, लगातार साइकिल चलाना।
निष्कर्ष
बवासीर एक आम लेकिन परेशान करने वाली स्थिति है, जिसका आयुर्वेदिक उपचार प्रभावी और सुरक्षित है। सही खानपान, रहन-सहन और आयुर्वेदिक दवाओं के साथ इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है।
यदि लक्षण गंभीर हों, तो तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें।