मोटापा कम करने के आसान आयुर्वेदिक उपाय 2025

Overweight man in a maroon t-shirt holding his stomach with a worried expression.

आज हम एक बहुत ही महत्वपूर्ण और आम स्वास्थ्य समस्या, स्थूलता (मोटापा), के बारे में बात करेंगे। यह जानकारी आयुर्वेदिक उपचार दिशानिर्देशों पर आधारित है, जो चार छवियों से ली गई है। हम स्थूलता के कारण, लक्षण, निदान, और आयुर्वेदिक उपचार के विभिन्न स्तरों (लेवल 1, 2, और 3) के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे। इसके साथ ही, हम आहार और जीवनशैली में बदलाव (पथ्य-अपथ्य) पर भी ध्यान देंगे, जो मोटापे को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। यह ब्लॉग हिंदी में है और 1000 शब्दों से अधिक का है, जिसमें सभी दवाओं के नाम सही ढंग से लिखे गए हैं।

स्थूलता (मोटापा) क्या है?

स्थूलता, जिसे आयुर्वेद में स्थौल्य कहा जाता है, शरीर में अत्यधिक वजन का बढ़ना है, जो कफ, रस, और मेद की विशेषताओं के कारण होता है। यह एक ऐसी स्थिति है, जिसमें व्यक्ति का शरीर अत्यधिक वजन के प्रति संवेदनशील हो जाता है। आयुर्वेद के अनुसार, इसे अष्टनिंदिता पुरुष (आठ अवांछनीय स्थितियों में से एक) के तहत वर्गीकृत किया गया है। स्थूलता तब होती है जब किसी व्यक्ति का बॉडी मास इंडेक्स (BMI) 25 किग्रा/मी² से अधिक हो और शरीर में पेंडुलस पेट, नितंब, स्तन, सांस लेने में तकलीफ, अत्यधिक पसीना, और भूख में वृद्धि जैसे लक्षण दिखाई दें।

कारण

स्थूलता के कई कारण हो सकते हैं, जैसे:

  • अनुवांशिक कारक
  • अनुचित आहार
  • गतिहीन जीवनशैली
  • मेटाबोलिक सिंड्रोम, हाइपोथायरायडिज्म, कुशिंग सिंड्रोम, और पॉलीसिस्टिक ओवेरियन डिजीज (PCOD)

स्थूलता का निदान

आयुर्वेद में स्थूलता का निदान निम्नलिखित तरीकों से किया जाता है:

क्लिनिकल निदान (लेवल 1)

  • यदि व्यक्ति का BMI 25 किग्रा/मी² से अधिक है, और कमर की परिधि महिलाओं में 80 सेमी और पुरुषों में 102 सेमी से अधिक है, तो उसे स्थूलता के रूप में निदान किया जा सकता है।
  • वजन, कमर की परिधि, और एंथ्रोपोमेट्री माप भी जांचे जाते हैं।

जांच

  • लेवल 1: कोई विशेष जांच की आवश्यकता नहीं।
  • लेवल 2: थायराइड फंक्शन टेस्ट।
  • लेवल 3: अंतःस्रावी विकारों के लिए हार्मोनल मूल्यांकन।

स्थूलता का आयुर्वेदिक उपचार

आयुर्वेद में स्थूलता का उपचार तीन स्तरों पर किया जाता है: लेवल 1 (एकल आयुर्वेदिक चिकित्सक/प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र), लेवल 2 (सीएचसी या छोटे अस्पताल), और लेवल 3 (आयुर्वेदिक संस्थान/अस्पताल)। आइए, इन सभी स्तरों को विस्तार से समझें।

लेवल 1: एकल आयुर्वेदिक चिकित्सक/प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र

उपचार

स्थूलता को एक जीवनशैली विकार माना जाता है, इसलिए आहार नियंत्रण और शारीरिक गतिविधि के साथ जीवनशैली में बदलाव सबसे महत्वपूर्ण हैं।

  • यदि रोगी को आम और पाचन की समस्या है, तो शुरुआती कुछ दिनों के लिए त्रिकटु चूर्ण या हरितकी, गुडूची, और शुंठी चूर्ण को 3-6 ग्राम की मात्रा में भोजन से पहले दिन में दो बार गुनगुने पानी के साथ दिया जाता है। यह खुराक 2-3 सप्ताह तक दी जानी चाहिए।
  • यदि रोगी को कब्ज और भूख की कमी है, तो उसे पहले त्रिफला चूर्ण या हरितकी चूर्ण 5-6 ग्राम की मात्रा में खाली पेट गुनगुने पानी के साथ दिन में दो बार लेने की सलाह दी जाती है।
  • रोगी को औषधीय गुनगुना पानी जैसे मुस्ता सिद्ध जल, त्रिफला सिद्ध जल, या सामान्य गुनगुना पानी पीने की सलाह दी जाती है।

दवाएं

  • त्रिफला चूर्ण: 3-6 ग्राम, भोजन से पहले, दिन में दो बार, 4-8 सप्ताह, गुनगुने पानी के साथ।
  • मुस्ता चूर्ण: 3-6 ग्राम, भोजन से पहले, दिन में दो बार, 4-8 सप्ताह, गुनगुनेಸके।
  • हरितकी चूर्ण: 3-6 ग्राम, भोजन से पहले, दिन में तीन बार, 4-8 सप्ताह, गुनगुने पानी के साथ।
  • कटुकी चूर्ण: 3-6 ग्राम, भोजन से पहले, दिन में तीन बार, 4-8 सप्ताह, गुनगुने पानी के साथ।
  • विदंग चूर्ण: 3-6 ग्राम, भोजन से पहले, दिन में तीन बार, 4-8 सप्ताह, गुनगुने पानी के साथ।
  • गोमूत्र हरितकी वटी: 3-6 ग्राम, भोजन से पहले, दिन में दो बार, 2-3 सप्ताह, गुनगुने पानी के साथ।
  • फलत्रिकादी क्वाथ: 20-40 मिली, भोजन से पहले, दिन में दो बार, 2-3 सप्ताह।
  • कंचनार गुग्गुलु वटी: 0.5-1 ग्राम, भोजन से पहले, दिन में दो बार, 2-3 सप्ताह, गर्म पानी के साथ।
  • त्रिफला गुग्गुलु वटी: 0.5-1 ग्राम, भोजन से पहले, दिन में दो बार, 2-3 सप्ताह, गर्म पानी के साथ।
  • मेदोहर गुग्गुलु वटी: 0.5-1 ग्राम, भोजन से पहले, दिन में दो बार, 2-3 सप्ताह, गर्म पानी के साथ।
  • विदंगदी लौह वटी: 250-500 मिलीग्राम, भोजन से पहले, दिन में दो बार, 2-3 सप्ताह, गर्म पानी के साथ।
  • अभयारिष्ट: 10-20 मिली, भोजन के बाद, दिन में तीन बार, 2-3 सप्ताह, समान मात्रा में पानी के साथ।
  • अरोग्यवर्धिनी वटी: 250-500 मिलीग्राम, भोजन से पहले, दिन में दो बार, 2-3 सप्ताह, गर्म पानी के साथ।

नोट

  • जिन मरीजों का BMI 25-30 के बीच है और जिन्ह 四

्हें हाइपोथायरायडिज्म या मोटापे का पारिवारिक इतिहास है, उन्हें त्रिफला चूर्ण, हरितकी वटी, या गोमूत्र हरितकी वटी के साथ सख्त आहार और जीवनशैली में बदलाव की सलाह दी जाती है।

  • जिन मरीजों का BMI 30-35 के बीच है, उन्हें फलत्रिकादी क्वाथ के साथ उपरोक्त दवाएं दी जा सकती हैं।

लेवल 2: सीएचसी या छोटे अस्पताल

क्लिनिकल निदान

लेवल 1 के समान।

जांच

  • लेवल 1 के समान।
  • थायराइड फंक्शन टेस्ट।

उपचार

  • हाइपोथायरायडिज्म से पीड़ित मरीजों को अतिरिक्त उपचार जैसे कंचनार गुग्गुलु, चिन्चा भल्लातक वटी, वरुणा शिग्रु क्वाथ, अमृतादि गुग्गुलु, और वर्धमाना पिप्पली रसायन दिया जा सकता है। इसके अलावा, उद्वर्तन (शरीर पर जौ चूर्ण या बाष्प स्वेदन) भी किया जा सकता है।
  • डायबिटीज से पीड़ित मरीजों को फलत्रिकादी क्वाथ, गुडुच्यादि क्वाथ, और शिलाजतु दिया जा सकता है।

दवाएं

  • अपामार्ग तंडुल चूर्ण: 2-3 ग्राम, भोजन से पहले, दिन में दो बार, 1 महीने, गर्म पानी के साथ।
  • लोहभस्म अरिष्ट: 5-10 मिली, भोजन के बाद, दिन में तीन बार, 2-3 सप्ताह, समान मात्रा में पानी के साथ।
  • शिलाजतु चूर्ण: 500 मिलीग्राम, भोजन से पहले, दिन में तीन बार, 2-3 सप्ताह, मधु/गर्म पानी के साथ।
  • त्रिफलादी तैल: 10-20 मिली, भोजन से पहले, दिन में दो बार, 2-3 सप्ताह, गर्म पानी के साथ।

अतिरिक्त उपचार

  • मृदु विरेचन: मरीज को हरितकी चूर्ण 5-10 ग्राम गर्म पानी के साथ 3-5 दिनों तक देना चाहिए। इसके बाद, रोगी को शुरुआती कुछ दिनों तक उपवास की सलाह दी जा सकती है।

लेवल 3: आयुर्वेदिक संस्थान/अस्पताल

क्लिनिकल निदान

लेवल 1 के समान।

जांच

अंतःस्रावी विकारों के लिए हार्मोनल मूल्यांकन।

उपचार

  • वामन कर्म: स्नेहन के लिए घी का उपयोग न करें।
  • विरेचन कर्म: त्रिफला क्वाथ 100 मिली के साथ एरण्ड तेल 40 मिली या अन्य उपयुक्त विरेचन कल्प।

रसायन

  1. शिलाजतु रसायन कल्प
  2. अमलकी रसायन कल्प
  3. वर्धमाना पिप्पली रसायन कल्प
  4. विदंगदी रसायन कल्प
  5. हरितक्यादि रसायन कल्प

पथ्य-अपथ्य (आहार और जीवनशैली)

पथ्य (करें)

आहार

  • यव (जौ), मक्का, बाजरा, ज्वार, रागी, लाल चावल/अनाज, मूंग दाल (हरी दाल) बिना छिलके वाली या ट्वर दाल का उपयोग करें।
  • फल जैसे संतरे, पपीते, सलाद (खीरा, गाजर, मूली, पालक), सब्जी के सूप (पटोला, लौकी), गुनगुने पानी और शहद का सेवन करें।

विहार

  • सुबह जल्दी उठें, नियमित व्यायाम करें, तेज चलें, तैराकी करें, आउटडोर खेल खेलें, और योग करें।

अपथ्य (न करें)

आहार

  • तला हुआ भारी भोजन, काला चना, परिष्कृत खाद्य पदार्थ जैसे सफेद आटा, मटर, चना, आलू, दही, दूध, किण्वित और बेकरी आइटम, दिन में सोना, और गतिहीन जीवनशैली से बचें।

निष्कर्ष

स्थूलता एक ऐसी स्थिति है जो जीवनशैली में बदलाव और आयुर्वेदिक उपचार से नियंत्रित की जा सकती है। लेवल 1, 2, और 3 के उपचारों में त्रिफला चूर्ण, हरितकी चूर्ण, कंचनार गुग्गुलु, और शिलाजतु जैसी दवाएं प्रभावी हैं। इसके साथ ही, उचित आहार और व्यायाम भी महत्वपूर्ण हैं। यदि मरीज लेवल 1 और 2 के उपचार से ठीक नहीं होता, तो उसे उच्च केंद्रों में रेफर करना चाहिए। आयुर्वेदिक दृष्टिकोण न केवल मोटापे को नियंत्रित करता है, बल्कि समग्र स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाता है। स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं और आयुर्वेद की शक्ति से लाभ उठाएं!

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