परिचय
मूत्राशय शिला एक ऐसी बीमारी है जो पुरुषों में प्रोस्टेट ग्रंथि के बढ़ने से होती है। इसे आयुर्वेद में मूत्राशय शिला (BPH – बेनिन प्रोस्टेटिक हाइपरप्लासिया) के नाम से जाना जाता है। यह ब्लैडर और मूत्र मार्ग पर दबाव डालती है, जिससे मूत्र संबंधी समस्याएँ होती हैं। इस ब्लॉग में हम आयुर्वेदिक स्टैंडर्ड ट्रीटमेंट गाइडलाइंस के आधार पर इस बीमारी के इलाज के बारे में जानेंगे। हम तीन स्तरों (Level 1, Level 2, Level 3) पर इलाज की जानकारी देंगे और दवाइयों की तालिका भी बनाएंगे।
स्तर 1: सोलो आयुर्वेदिक चिकित्सक के क्लिनिक/PHC
पहले स्तर पर, डॉक्टर मरीज की शारीरिक जांच और लक्षणों के आधार पर बीमारी का पता लगाते हैं। अगर प्रोस्टेट ग्रंथि में मामूली बढ़ोतरी है, तो इसे BPH माना जा सकता है। इलाज के लिए निम्नलिखित दवाइयाँ दी जा सकती हैं:
- क्या करें, क्या न करें (आहार और जीवनशैली शिक्षा):
- क्या करें: ज्यादा फ्लूइड और मूत्रवर्धक भोजन जैसे पपीता, शाली (चावल), मूडगा (हरी मूंग), ककड़ी, नारियल पानी, आलू, बादाम, केला, नींबू, अनार, अनानास, पाइनएप्पल जूस, और अदरक का इस्तेमाल।
- क्या न करें: ठंडा पानी, चिकनाई वाला खाना, मसालेदार भोजन, शराब, और प्राकृतिक जरूरतों को रोकना।
- दवाइयाँ: मंजिष्ठादी क्वाथ, कमलालाना कषाय, और कदली कंद कषाय BPH के लिए दी जा सकती हैं। अगर दर्द हो, तो त्रिफला गुग्गुलु, सरजकक्षर, या अजमोदादी चूर्ण भी दी जा सकती है।
- रेफरल मानदंड: अगर इलाज से फायदा न हो, प्रोस्टेट का आकार बढ़ता जाए, या मूत्र में दर्द हो, तो अगले स्तर पर भेजा जाए।
स्तर 2: CHC या छोटे अस्पतालों में बेसिक सुविधाएँ
दूसरे स्तर पर, डॉक्टर मरीज की स्थिति को और जांचते हैं। अगर लक्षण बढ़ें, तो निम्नलिखित इलाज और जांच की जाती है:
- जांच: खून की जांच (Serum alkaline phosphatase, Serum testosterone), ट्रांस रेक्टल अल्ट्रासोनोग्राफी (TRUS), सिस्टोस्कोपी और प्रोस्टेट बायोप्सी।
- क्या करें, क्या न करें (आहार और जीवनशैली शिक्षा): पहले स्तर जैसी ही।
- दवाइयाँ: गोक्षुरादी घृत, पुनर्नवादी कषाय, और शुद्ध शिलाजीत दी जा सकती हैं।
- रेफरल मानदंड: अगर इलाज से आराम न मिले, मूत्र रुकावट बढ़े, या कैंसर का शक हो, तो अगले स्तर पर भेजा जाए।
स्तर 3: आयुर्वेदिक अस्पताल या जिला अस्पताल
तीसरे स्तर पर, गंभीर मरीजों का इलाज होता है। अगर मूत्र रुकावट ज्यादा हो, तो सर्जरी या विशेष जांच की सलाह दी जा सकती है:
- जांच: ब्लड टेस्ट, यूएसजी, और यूरिन जांच।
- क्या करें, क्या न करें (आहार और जीवनशैली शिक्षा): पहले स्तर जैसी ही।
- दवाइयाँ: शुद्ध शिलाजीत, गोक्षुरादी घृत, और कंचनार गुग्गुलु।
- रेफरल: अगर मरीज की हालत गंभीर हो, तो विशेषज्ञ डॉक्टर को दिखाया जाए।
दवाइयों की तालिका
स्तर | दवा | रूप | खुराक | समय | अवधि | अनुपान |
---|---|---|---|---|---|---|
1 | गोक्षुर चूर्ण | चूर्ण | 3-6 ग्राम | भोजन के बाद/ दिन में 3 बार | 2-3 सप्ताह | पानी |
1 | पुनर्नवा चूर्ण | चूर्ण | 2-3 ग्राम | भोजन के बाद/ दिन में 3 बार | 2-3 सप्ताह | पानी |
1 | गुडुची चूर्ण | चूर्ण | 3-6 ग्राम | भोजन के बाद/ दिन में 3 बार | 2-3 सप्ताह | पानी |
1 | धन्वय हिमा | तरल | 10-20 मिली | भोजन के बाद/ दिन में 3 बार | 2-3 सप्ताह | – |
1 | रासायन चूर्ण | चूर्ण | 3-6 ग्राम | भोजन के बाद/ दिन में 3 बार | 2-3 सप्ताह | पानी |
1 | भल्लातक चूर्ण | चूर्ण | 3-6 ग्राम | भोजन के बाद/ दिन में 3 बार | 2-3 सप्ताह | पानी |
1 | गोक्षुरादी घृत | घृत | 1-2 वटी | भोजन के बाद/ दिन में 3 बार | 2-3 सप्ताह | गुनगुना पानी |
2 | शुद्ध शिलाजीत | चूर्ण | 500 मिलीग्राम-1 ग्राम | भोजन के बाद/ दिन में 2 बार | 2-3 सप्ताह | दूध |
2 | गोक्षुरादी घृत | घृत | 1-2 वटी | भोजन के बाद/ दिन में 2 बार | 2-3 सप्ताह | – |
2 | कंचनार गुग्गुलु | वटी | 1-2 वटी | भोजन के बाद/ दिन में 2 बार | 2-3 सप्ताह | पानी |
2 | पलाश कषाय | चूर्ण | 250-500 मिलीग्राम | भोजन के बाद/ दिन में 3 बार | 2-3 सप्ताह | पानी |
2 | वरुणादी घृत | घृत | 5-10 ग्राम | भोजन के बाद/ दिन में 3 बार | 2-3 सप्ताह | गुनगुना पानी |
निष्कर्ष
मूत्राशय शिला का इलाज आयुर्वेद में प्राकृतिक तरीके से किया जाता है। सही आहार, दवाइयाँ, और डॉक्टर की सलाह से इस बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है। अगर लक्षण गंभीर हों, तो तुरंत विशेषज्ञ से संपर्क करें।